भगवान राम के समय से यह दिन विजय प्रस्थान का प्रतीक हैइस दिन भगवान रामचंद्र चौदह वर्ष का वनवास भोगकर तथा रावण का वध कर अयोध्या पहुँचे थे इसलिए भी इस पर्व को विजयादशमी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि आश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को तारा उदय होने के समय विजय नामक काल होता है। भारतीय इतिहास में अनेक उदाहरण हैं जब हिन्दू राजा इस दिन विजयादशमी करते थे।इस पर्व को भगवती के ‘विजया’ नाम पर भी ‘विजयादशमी’ कहते हैं। इस दिन भगवान रामचंद्र चौदह वर्ष का वनवास भोगकर तथा रावण का वध कर अयोध्या पहुँचे थे। इसलिए भी इस पर्व को ‘विजयादशमी’ कहा जाता है। यदि हम इसे महाभारत से जोडकर देखे तो दुर्योधन ने पांडवों को जुए में पराजित करके बारह वर्ष के वनवास के साथ तेरहवें वर्ष में अज्ञातवास की शर्त दी थी। तेरहवें वर्ष यदि उनका पता लग जाता तो उन्हें पुनः बारह वर्ष का वनवास भोगना पड़ता। इसी अज्ञातवास में अर्जुन ने अपना धनुष एक शमी वृक्ष पर रखा था तथा स्वयं दूसरे वेश में राजा विराट के यहँ नौकरी कर ली थी। जब गोरक्षा के लिए विराट के पुत्र ध ने अर्जुन को अपने साथ लिया, तब अर्जुन ने शमी वृक्ष पर से अपने हथियार उठाकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी। विजयादशमी के दिन भगवान रामचंद्रजी के लंका पर चढ़ाई करने के लिए प्रस्थान करते समय शमी वृक्ष ने भगवान की विजय का उद्घोष किया था। विजयकाल में शमी पूजन इसीलिए होता है भगवान राम ने रावण से युद्ध हेतु इसी दिन प्रस्थान किया था। यही नहीं इसी दिन मराठा रत्न शिवाजी ने भी औरंगजेब के विरुद्ध इसी दिन प्रस्थान करके हिन्दू धर्म का रक्षण किया था। आशा करता हू कि आप समझ गये होंगे। कि विजयदशमी मनाने के क्या कारण और क्या -क्या पटकथाएं जुडी हुयी हैं इसी प्रकार के आकर्षक तथ्यों को जानने के लिए या हमसे जुडने के लिये इस पेज को फॉलो करें